अपने पुरखों के बारे में कुछ कहानियों के अंश

बड़े-बुजुर्गों का सानिध्य हमें बाल्यावस्था में भले ही मिला हो लेकिन धीरे-धीरे समय की व्यस्तता के मध्येनजर हम उन यादों को धुंधली कर देते हैं । बहुत बातें ऐसी होती हैं जिनका कभी हम पिताजी-दादाजी के साथ बैठकर इतना लुत्फ उठा रहे थे कि तब के समय में उससे ऊपर कुछ नहीं फिर भी हम उन बातों को धीरे-धीरे भूल ही जाते हैं जब कभी चर्चा होती है तो याद भी आ जाती हैं और नहीं भी ।
लेकिन जहाँ तक मैं अपनी बात करूँ तो मैंने या हम बहिन-भाइयो ने बाबा/दादा जी को कभी नहीं देखा, बस उनकी बातों का वृतांत ही सुना है । वो ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनको हमने सुना, क्रमशः उन्हीं बातों को में यहाँ लिख रहा हूँ ।


घटना 1- 12 चोरों की कहानी:-


एक बार कन्हैया बाबा और केसरिया बाबा चारा लेकर खेत से आ रहे थे । उस समय खेतों के किनारे जब पगडंडी से गुजर रहे थे तो खेतों में कुछ फसल खड़ी थी उसमें कुछ चोर निकले ।दोपहर का समय था । चोरों ने दोनों बाबाओं पे झपट्टा मारा, दोनों के सिर पर चारे के बोझा था । बोझा को जमीन पर रखकर चोरों से हाथापाई शुरू कर दी । एक-के बाद एक 12 चोर बाहर आ गए। चोरों का ध्यान सिर्फ और सिर्फ बड़े बाबा कन्हैया बाबा के कानों में पहने हुए बडे-बडे कुंडल थे। छोटे बाबा आगे तरफ भागे तो बड़े बाबा पे वो सब एक साथ टूट पड़े । बाबा ने हिम्मत नहीं हारी और वो लड़ते रहे अचानक से एक चोर ने उनके दोनों कानों पर झपट्टा मारा और दोनों कुण्डलों को कान को फाड़ते हुए हाथ में लेकर भागा, बाबा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था अगले क्षण सारे के सारे चोर वहाँ से भाग निकले । छोटे बाबा भी लौटकर आये तब तक वहाँ सब कुछ हो चुका था । घर आकर जिसने भी उनकी सुनी सब के सब उनकी हिम्मत की दाद देने लगे ।
एक और वाक्या है बड़े बाबा का , गाँव पाली हमारे गाँव भरनाकलां से गोवर्धन की तरफ 3 km दूर है । उनको चारे के लिए मशीन लानी थी उन दिनों ज्यादा कुछ साधन नहीं थे अगर थे भी तो पैसे की किल्लत रही होगी । बाबा ने पाली गाँव के किसी आदमी चारे कूटने वाली मशीन खरीद कर अपने दोनों कंधों पे रखकरअपने गाँव ले आये । अमूमन उस मशीन का वजन डेढ़ कुंटल का रहा होगा । ऐसी उनमें ताकत थी । वे दूध-दही पीने-खाने के बहुत शौकीन थे, कई गाय वो एक साथ पालते थे । वो रोटियों के साथ मक्खन खाते थे जिन्हें हैम लौनी घी बोलते हैं वो रोटियों पर मक्खन के लौंदे ( गोले) रख कर भोजन का लुत्फ लेते थे । इसके अलावा उड़द की दाल व गेहूँ के रोटियां जिन्हें बेलन द्वारा बेलकर बनाया जाता है उनके साथ खाते थे वैसे गाँव उन रोटियों को फुल्का या फुलकिया कहा जाता था ।
माता-पिता ने होने की बजह से बाबा दो भाई ही थे घर में, कभी-कभार उनमें मल युद्ध भी देखने को मिलता था । एक बार उनमें आपस में किसी बात को लेकर बहस हो गयी तो दोनों भाई मूसलों से लड़े किसी बचाने वाले कि हिम्मत नहीं थी कि कोई उनका बीच-बचाव कर सके । क्योंकि बचाने वाले को अपने पिटने का डर रहता था । फिर कुछ देर बात वो अपने आप शांत हो जाया करते थे ।
उनके द्वारा गाय पाले जाने के कारण लोग उन्हें गैया बाबा कहकर भी संबोधित करते थे । कुछ लोग रंगरूट भी बुलाते थे ।
उम्र में बड़े कन्हैया बाबा और छोटे केसरिया बाबा थे । बड़े बाबा भजन-ध्यान करने वाले थे वो गीता-रामायण भी पढ़ते थे । उनकी रामायण और महाभारत की किताबें खुद हमने देखी थीं जब छोटे थे । जिनमें केसरिया बाबा की शादी हुई थी । छोटे बाबा का ध्यान ज्यादातर खेती-बाड़ी करने में था । दादी भरनाखुर्द से थीं । दादी बहुत सीधी और सरल स्वभाव की थीं ।
बाबा के पास 12 बीघा गाँव के पास और 13 बीघा बम्बा के पास स्थित खेत की जुताई कर कृषि का काम किया करते थे । उनके 2 बेटी और 1 पुत्र था जोकि हमारे पिताजी थे । हमारे पिताजी जिन्हें हम दादा कहकर पुकारते थे उनकी उम्र महज 7 वर्ष रही होगी जब छोटे बाबा भर जवान उम्र में स्वर्ग सिधार गए । लोग कहते हैं कि उन पर किसी ने घात चलवा दी थी । उनके जाने के बाद खेती का काम बड़े बाबा और दादा (पिताजी) करने लगे ।


बाबा को थोड़ा घूमना-फिरना पसन्द था उन्हें मोह-माया कम पसन्द थी । वे उस जमाने में भी गंगा सागर की सैर करके आये थे, वो बताते थे कि एक बार लहर उनको अंदर तक बहाकर ले गयी वो आगे कहते हैं कि मेरा दम घुटने लग गया था तभी लहरों के नीचे गिरना शुरू हुआ तब सांस में सांस आयी। वे कभी-कभार चिलम का भी सेवन करते थे, उनकी गाँव में व आसपास के गाँव दो-चार चुनिंदा बैठकें थी वो वही जाते थे । कुछ दिनों बाद इस बजह से घर की बागडोर दादा जी ने संभाली ।
दोनों बुआओं (सोनदेवी-रेवती) की शादी के बाद दादा जी (होती लाल) की शादी भी कम उम्र में हो गयी थी दादा जी को लोग उनके सरल स्वभाव के कारण लल्लू काका कहकर संबोधित करते थे । वैसे दादा जी की दो शादियां हुई एक तो वो शादी जिसमें बड़ी माता घर ही नहीं आयी उनके माता की बीमारी हो गयी थी तो वो चल बसीं। पुराने जमाने में जल्दी शादी करके आँचल-गाँठ 1 साल बाद, 3 साल बाद या 5 साल बाद इस तरीके से करते थे । और दूसरी शादी हमारी माता श्री राम ढकेली देवी जी से हुई ।


हम 5 भाई-बहिन हैं वैसे दो बहिनें बचपन में ही चल बसीं थीं । दोनों बहिन गोमटी-जावित्री व भाई सतीश-ओमप्रकाश-महेश । मैं मझला भाई हूँ । हम सबकी भी शादी हो चुकी है । 1994 में बहिनों की गांव सीह में एवम बड़े भाई और मेरी भरनाखुर्द से तथा छोटे भाई की ग्राम विजवारी से ।
दादा का जन्म लगभग भारत की आजादी के आसपास का जन्म है । पिताजी की शादी लगभग 1970 के आसपास हुई थी ।

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